About the Book: जब एक खामोश-सी नीली 'वादी' में एक शायर को किसी के क़दमों की आहट सुनाई पड़ती है, किसी के साँसों की खुशबू उसकी साँसों में घुलती है, हर पहाड़ी से, हर बादल से, हर पेड़ से जब उसे कोई इशारा करता है और बहुत तलाश करने पर भी उसे जब 'तुम' नहीं मिलता और वह किसी थके-हारे फुल की तरह हवा के झोंकों के तकिये पे सर रख कर सो जाता है, तब उसे अपने अंदर के पराग की अनुभूति होती है, जैसे मृग को कस्तूरी का इल्म होता है और वह 'मैं' में खो जाता है। इसी पुरसुकून भरे लम्हे में शायर सवालों में जवाब ढूंढता है और जवाबों में सवाल, कभी तिलिस्म को हकीकत मान बैठता है तो कभी हक़ीक़त को नकार देता है, कभी खुदा से मुहब्बत कर बैठता है और कभी तो खुद को ही खुदा मान लेता है। इसी 'तुम', 'मैं' और खुबसुरत वादियों की सफर आप भी कर सकें इसीलिए ये नज़्मे आपके साथ साझा किया है।
Lieferbar
ISBN | 9789394603424 |
---|---|
Sprache | hin |
Cover | Kartonierter Einband (Kt) |
Verlag | Wow Pub Pvt Ltd |
Jahr | 20230819 |
Dieser Artikel hat noch keine Bewertungen.