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Das, Parthajeet
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About the Book: जब एक खामोश-सी नीली 'वादी' में एक शायर को किसी के क़दमों की आहट सुनाई पड़ती है, किसी के साँसों की खुशबू उसकी साँसों में घुलती है, हर पहाड़ी से, हर बादल से, हर पेड़ से जब उसे कोई इशारा करता है और बहुत तलाश करने पर भी उसे जब 'तुम' नहीं मिलता और वह किसी थके-हारे फुल की तरह हवा के झोंकों के तकिये पे सर रख कर सो जाता है, तब उसे अपने अंदर के पराग की अनुभूति होती है, जैसे मृग को कस्तूरी का इल्म होता है और वह 'मैं' में खो जाता है। इसी पुरसुक...

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